हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना...
छींटाकसी आरोप प्रत्यारोप दिमागी खलल है
मनुस्मृति को कुछ कहने से पहले मनु को समझना
ऋचाएं क्या गाती है , उपनिषद क्या कहते हैं
उनको रचने वाले कितने गहरे तप से गुजरते हैं
ईश्वर को समझने से पहले ईश्वर हो जाना
सम्पूर्ण वेदो को समझने से पहले वेदवाक्य समझना
गीता को कुछ कहने से पहले कृष्ण नहीं व्यास हो जाना
और फिर कृष्ण को अपने अंदर उतार गीता पढ़ना
रामायण को कुछ कहने से पहले तुलसी बन जाना
और राम को लहू बना अपनी रामायण गाना
क्यूंकि
हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना...
भाषा का अपना वैज्ञानिक आधार 'तरंग' है
और भाव प्राकट्य की सक्षमता बुनियाद है
छींटाकसी आरोप प्रत्यारोप दिमागी खलल है
जागरण की विधा से जागरूक हो कर
संस्कृति होना श्रृंखला की, अचार-संहिता का अर्थ समझना
सनातनी! सनातन का मर्म समझना
वर्ण को जाती से मेल कर भूल न करना
ब्राह्मण द्विज विद्वान बनने की सन्नहित क्रिया समझना
क्यूंकि
हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना ...
मन के भाव प्रेम घृणा , विष अमृत, ऊँचनीच, जातपांत
रूचि देखो भद्र पुरुष विचारपूर्वक इंगित मार्ग पे चल निकलो
क्यों अटके उलझे जन्म के मायाजाल में
अपने होने का अरथ पहले जान लो
क्या पता ? कर्म तुम्हारा तुम्हे खींचे वीरता की ओर
क्या पता तुम्हे भाये नृत्यसंगीत
क्या पता तुम्हे प्रीतिकर हो ब्रह्मज्ञान
और तुम जन्म के खाके में कैद रह जाओ
और अपना जन्म व्यर्थ में गंवाओ
देखो! ऐसा भ्रम दिल में न पालना
क्यूंकि
हमारे धर्म का प्यारा सा आग्रह है
अन्य को समझने से पहले खुद को जानना ...